नई पुस्तकें >> संघर्ष से मिली सफलता सानिया मिर्जा संघर्ष से मिली सफलता सानिया मिर्जासानिया मिर्जा
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वर्तमान में विमेंस डबल्स में विश्व की नंबर एक खिलाड़ी सानिया मिर्ज़ा ने जब सोलह वर्ष की उम्र में विंबलडन चैंपियनशिप में विमेंस डबल्स ख़िताब जीता, तो सनसनी फ़ैल गई।
2003 में शुरू हुए अपने सिंगल्स करियर से २०१२ में रिटायरमेंट तक उन्हें विमेंस टेनिस एसोसिएशन ने सिंगल्स और डबल्स दोनों में भारत की शीर्षस्थ खिलाड़ी का दर्जा दिया। छह बार ग्रैंड स्लैम चैंपियन रह चुकी सानिया ने अगस्त 2015 और फ़रवरी 2016 के बीच अपनी डबल्स पार्टनर मार्टिना हिंगिस के साथ लगातार 41 बार जीतने का असाधारण कीर्तिमान बनाया।
यह पुस्तक एक प्रतिष्ठित भारतीय खिलाड़ी की कहानी है, जिसने शिखर पर पहुँचने के लिए बेहद कठिन परिस्थितियों पर विजय पाई। सानिया साफ़गोई से बताती हैं कि सफलता की राह में उन्हें कैसी-कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, कई चोट और ऑपरेशन के कारण कितनी शारीरिक और भावनात्मक क्षति हुई, कौन-से मित्र और साझेदार उनके परिवार के साथ उनका सहारा बने, उन्होंने लगातार कितने सार्वजनिक दबाव सहे और राजनीति के दाँव-पेंच व निराशाओं को भी झेला, जो सफलता के साथ हमेशा जुड़े होते हैं।
सानिया ने हमेशा नियमों को तोड़ते हुए अपने दिल की बात कही है और सीमाओं के पार जाकर मेहनत की, उन्होंने भारत के लिए आक्रमक अंदाज़ में खेला है और इस बात की परवाह नहीं करी कि इसकी वज़ह से उनकी रैंकिंग पर बुरा असर पढ सकता है - वे प्रेरणा का स्त्रोत हैं और टेनिस कोर्ट से विदा होने के बाद भी हमेशा प्रेरणादायी बनी रहेंगी।
2003 में शुरू हुए अपने सिंगल्स करियर से २०१२ में रिटायरमेंट तक उन्हें विमेंस टेनिस एसोसिएशन ने सिंगल्स और डबल्स दोनों में भारत की शीर्षस्थ खिलाड़ी का दर्जा दिया। छह बार ग्रैंड स्लैम चैंपियन रह चुकी सानिया ने अगस्त 2015 और फ़रवरी 2016 के बीच अपनी डबल्स पार्टनर मार्टिना हिंगिस के साथ लगातार 41 बार जीतने का असाधारण कीर्तिमान बनाया।
यह पुस्तक एक प्रतिष्ठित भारतीय खिलाड़ी की कहानी है, जिसने शिखर पर पहुँचने के लिए बेहद कठिन परिस्थितियों पर विजय पाई। सानिया साफ़गोई से बताती हैं कि सफलता की राह में उन्हें कैसी-कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, कई चोट और ऑपरेशन के कारण कितनी शारीरिक और भावनात्मक क्षति हुई, कौन-से मित्र और साझेदार उनके परिवार के साथ उनका सहारा बने, उन्होंने लगातार कितने सार्वजनिक दबाव सहे और राजनीति के दाँव-पेंच व निराशाओं को भी झेला, जो सफलता के साथ हमेशा जुड़े होते हैं।
सानिया ने हमेशा नियमों को तोड़ते हुए अपने दिल की बात कही है और सीमाओं के पार जाकर मेहनत की, उन्होंने भारत के लिए आक्रमक अंदाज़ में खेला है और इस बात की परवाह नहीं करी कि इसकी वज़ह से उनकी रैंकिंग पर बुरा असर पढ सकता है - वे प्रेरणा का स्त्रोत हैं और टेनिस कोर्ट से विदा होने के बाद भी हमेशा प्रेरणादायी बनी रहेंगी।
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